असली जीवन

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हमारी ज़िन्दगी के अंदर सुख भी होता है, दुख भी होता है। सुख में हम यही कोशिश करते हैं कि सुख का अनुभव करें। पर जब दुख होता है तो हम व्याकुल होते हैं कि इस दुख से कैसे निकलें। कई बार तो हम यह नहीं समझ पाते हैं कि ‘‘हम कौन हैं? हम क्या हैं?’’ एक सच्चाई है, जो इस संसार के अच्छे से भी परे है और बुरे से भी परे है। वह सच्चाई सबके हृदय में मौजूद है। मनुष्य देखता है कि ‘‘मेरे साथ क्या हुआ है, मैंने क्या हासिल किया है, क्या खोया है, क्या पाया है’’ पर यह नहीं देखता है कि बनाने वाले ने उसको क्या दिया है। बनाने वाले ने उसके अंदर क्या रखा है।

हर एक व्यक्ति के अंदर एक विशेषता है और हमारा काम है किसी प्रकार उस विशेषता को आगे लाया जाय। विशेषता है- असली सुंदरता की। विशेषता है- असली मानवता की। असली मानवता, जो सबके हृदय में विराजमान है। जो इस संसार में नहीं, बल्कि हर एक व्यक्ति में- चाहे वह कोई भी हो,
कहीं का भी हो, सबके अंदर विराजमान है। ऐसी विशेषता, ऐसा प्यार, जो बनाने वाले ने सबको दिया है।

आप अपना चेहरा नहीं देख सकते, दूसरों का चेहरा देख सकते हैं। अगर आप अपना चेहरा देखना चाहते हैं तो आपको आईने की जरूरत है। उसी प्रकार हमें भी ज्ञान रूपी आईने की जरूरत है, जिसमें हम साक्षात् उस चीज़ का प्रतीक देख सकें, जो हमारे हृदय में मौजूद है।

मनुष्य हर एक चीज़ को विचारों से पकड़ने की कोशिश करता है, परंतु जब भूख लगती है तो रोटी विचारों की नहीं चाहिए, रोटी तो आटे की होनी चाहिए, जो भूख को मिटा सके। कोई अगर कहे कि मैं तो सिर्फ रोटी का वर्णन करूँगा और आपकी भूख खत्म हो जाएगी। पर उससे भूख खत्म नहीं होगी। प्यास बुझाने के लिए पानी चाहिए। उसी प्रकार इस जीवन को सफल करने के लिए 'अनुभव' चाहिए। इस जीवन को सफल करने के लिए 'असली शांति' चाहिए।

इस जीवन को सफल करने के लिए एक ऐसी स्वतंत्रता की ज़रूरत है, जो सबके हृदय में व्याप्त है। वह है असली स्वतंत्रता! ऐसी स्वतंत्रता जिसको कोई छीन नहीं सकता है। हाँ, वह स्वतंत्रता, जिसे कोई मिटा नहीं सकता। ऐसा ज्ञान कि कोई भी अज्ञान उसको हिला नहीं सकता। इसलिए मैं कहता हूँ कि उस 'शांति' को समझिए, जिसकी आपको ज़रूरत है। असली शांति तो पहले से ही आपके अंदर है।

जो सारी सृष्टि का रचयिता है, उसने अपना मकान कहाँ बनाया है? उसने अपना मकान हमारे अंदर बनाया है। हाँ, हमारे अंदर। सबके घट के अंदर। वह दयालु है और उसकी दया का प्रतीक है, हर एक स्वांस! चाहे अच्छा हो, चाहे बुरा हो, कैसा भी दिन हो, पर स्वांस आता रहता है और जाता रहता है। यही उस बनाने वाले की कृपा है। क्या उस मकान तक भी गये हैं, जो बनाने वाले ने हम सबके अंदर बनाया है?

— प्रेम रावत (महाराजी)  Asli Jeevan