असली ज़रूरत

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आज अगर हम सारे संसार को देखें तो पता लगेगा कि यह ज़रूरतों के बल पर ही चल रहा है। आदमी की साधारण-सी ज़रूरतें हैं - भूख लगती है तो भोजन चाहिए; प्यास लगती है तो पानी चाहिए; जब आदमी थक जाता है, तो उसे विश्राम चाहिए; नींद आती है तो सोने की जगह चाहिए। इन सब ज़रूरतों को लेकर पूरे संसार के अंदर सारा बिज़नेस होता है। जब मनुष्य ने देखा कि मैं इन ज़रूरतों को पूरा करते-करते धनवान बन सकता हूँ, तो उसने सोचा कि मुझे इन ज़रूरतों को बढ़ाना चाहिए।

उस ज़रूरत को पूरा करने के लिए मनुष्य क्या-क्या नहीं करता है। मनुष्य अपनी निजी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कभी परेशान नहीं होता, परंतु वे ज़रूरतें जो सोसाइटी ने, इस दुनिया ने, हमारे ऊपर थोप रखी हैं, उनको पूरा करने के लिए मनुष्य ज़रूर परेशान होता है। भागता है, ये करता है, वो करता है, भगवान से प्रार्थना करता है, "ऐसा कर दो, वैसा कर दो। हे भगवान! मेरी नौकरी लगा देना, मेरा प्रोमोशन भी कर देना।"

कभी आपने बैठ करके ये सोचा कि आपकी असली ज़रूरत क्या है? लग गए ज़रूरतों को पूरा करने में, पर यह कभी नहीं सोचा कि हाँ, ये मेरा जीवन है, मैं ज़िन्दा हूँ। एक निश्चित समय के लिए मेरे अंदर स्वांस आता है और जाता है और जबतक स्वांस आता है और जाता है तबतक मैं जीवित रहूँगा। जबतक मैं जीवित हूँ, मेरी असली ज़रूरत क्या है? मेरा हृदय किस बात को जरूरत मानता है? अपने जीवन में कम से कम मैं अपनी असली ज़रूरत को तो पूरा करके जाऊं।

मनुष्य चाहे कितना भी परिश्रम कर ले, परन्तु वह अपनी सारी ज़रूरतों को तो पूरा नहीं कर पाएगा। जब सारी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पाएगा, तो कम से कम एक मुख्य ज़रूरत तो ज़रूर होगी, जिसको वह पूरा कर सकता है। आप अपने हृदय से पूछिए कि आपकी मुख्य ज़रूरत क्या है? आपको अपने आप उस चीज़ का अनुभव करना चाहिए। जिस प्रकार जबतक खाएंगे नहीं, तबतक भूख नहीं मिटेगी। इसी प्रकार, जबतक आप स्वयं शांति का अनुभव नहीं करेंगे, तबतक कुछ नहीं होगा। तबतक भूखे के भूखे ही रहेंगे। क्योंकि जिस चीज़ की आपको तलाश है, वो तो स्वयं ही आपके अंदर बसी हुई है। अगर आप अपने अंदर उस चीज़ को देखना चाहते हैं तो इसके लिए ज्ञान रूपी आईने की ज़रूरत है, ताकि आप भी उस चीज़ का अनुभव कर पाएं।

— प्रेम रावत (महाराजी)  Asli Zaroorat