हृदय की चाहत

satsang event
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इस संसार के अंदर मनुष्य आनंद चाहता है। दुनिया उससे कहती है कि आनंद कैसे मिलेगा! दुनिया उसे बताती है कि "तुम्हारी यह भी चाहत है, यह भी चाहत है," परन्तु मनुष्य कभी अपने से ये सवाल नहीं पूछता है कि उसे क्या चाहिए? उसके हृदय की क्या माँग है?

जब आप छोटे थे तो आपके माँ-बाप आपसे माँग करते थे, ‘‘तू पढ़-लिख ! तू ये कर, ये मत कर!’’ और अच्छे बच्चे की तरह आप यही कोशिश करते थे कि माँ-बाप को प्रसन्न रखें, खुश रखें। उसके बाद स्कूल जाने लगे, वहाँ मित्रों ने भी क्या कहा, ‘‘तू ऐसा बन, तू ऐसा बन!’’ उन्होंने भी तुम्हारे सामने अपनी माँगें रखीं और तुमने एक अच्छे दोस्त की तरह उन माँगों को पूरा करने की कोशिश की। उसके बाद अगर तुम्हारी नौकरी लग गई तो जिसके यहाँ नौकरी की, उसने भी तुम्हारे आगे माँगें रखीं कि ‘‘तुम ये करो, तुम ये करो! दिल लगा करके काम करो।’’ तो तुमने उस माँग को भी पूरा करने की कोशिश की। उसके बाद हो सकता है तुम्हारी शादी हो गई। तुम्हारी बीवी ने या तुम्हारे पति ने भी यही कहा, अपनी माँगें तुम्हारे आगे रखीं। कभी तुमने यह नहीं सोचा कि ‘‘तुम्हें क्या चाहिए! तुम्हारा हृदय क्या माँगता है? तुम्हारा हृदय क्या चाहता है? मैं अपना जीवन किस प्रकार सफल कर सकता हूँ? क्या कमी है मेरे जीवन के अंदर?’’

तो जिस चीज़ की तुमने रचना की है- सुख के लिए और तुम प्रार्थना करते हो हर दिन शांति के लिए- न वह सुख बाहर है न वह शांति बाहर है। वह सुख भी तुम्हारे अंदर है और वह शांति भी तुम्हारे अंदर है। जबतक तुमको उस चीज़ का अनुभव नहीं हो जाएगा, तबतक तुम्हारा जीवन अधूरा का अधूरा ही रहेगा। चाहे तुम कुछ भी कोशिश कर लो, कुछ भी तुम बाहर पाओ, परंतु यह हृदय तुम्हारा ही एक हिस्सा है। यह तुमसे अलग नहीं है। यह हृदय की पुकार भी तुम्हारी ही है। जिस दिन इस हृदय की पुकार को सुनना शुरू कर दोगे, उस दिन तुमको मालूम पड़ेगा कि इस जीवन के अंदर कितनी मिठास है।

जिस चीज़ की मैं चर्चा कर रहा हूँ, तुम अपने परिवार में रह करके, अपनी स्थिति में रह करके ज्ञान के द्वारा उस शांति का, परमानंद का, और परमसुख का अनुभव कर सकते हो। कोई अगर यह बताये कि "तुम बारिश से बचना चाहते हो तो ऐसी जगह जाओ जहाँ बारिश नहीं होती है। रेगिस्तान में चले जाओ, वहां बारिश नहीं होती है।" नहीं। हम यह कहते हैं कि तुम जहाँ भी हो, वहीं रहो। हम तुमको ज्ञान रूपी छाता देते हैं। जब भी बारिश हो और अगर तुम भीगना नहीं चाहते हो तो इस ज्ञान रूपी छाते को खोलो! यह तुमको उस बारिश से बचा लेगा।

— प्रेम रावत (महाराजी)  Hriday ki chahat