महालक्ष्य

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इस संसार में हम नाना प्रकार की चीजों को देखते हैं, नाना प्रकार के कार्य करते हैं।

नाना प्रकार के विचार और भावनाएं लोग हमारे अंदर डालते हैं और उन सब चीजों को देखकर हम सोचते हैं, यह अच्छा है, वह अच्छा है। इन सब बातों में उलझकर हम उस चीज को भूल जाते हैं जो असली है। इस बात का अहसास तब होता है जब हमारे जीवन की कहानी एक नई दिशा में मुड़ जाती है। एक दिन हमारा जन्म हुआ और एक दिन हमको जाना है। परंतु उस बात को हम भूल जाते हैं।

समय-समय पर संत-महात्मा हमें याद दिलाते हैं कि एक दिन आएगा जब तुम्हें इस दुनिया से जाना होगा। चाहे हम अपनी जिंदगी में कितने भी लक्ष्य बनाएं, पर महालक्ष्य क्या होना चाहिए, इसको हम भूल जाते हैं। हृदय की बात क्या है, इसे हम भूल जाते हैं और दुनिया भर की दूसरी बातों में लग जाते हैं।

एक सत्य बात यह है कि हमें ज्ञान पाने के लिए समय के सद्गुरु के पास जाना चाहिए।

ये बात कोई सुनने के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि उनके दिमाग में, मन में, छल-कपट भरा हुआ है। सत्य भी भूल गये, असत्य भी भूल गये, क्या कहाँ है? कहाँ क्या रखा हुआ है - सब भूल गए। क्या चीज़ अच्छी है, क्या चीज़ बुरी है - सब भूल गये।

हृदय की क्या पुकार है? यह भी भूल गये। चीज़ें तो बदलती रहेंगी। सारे नाते बदलते रहेंगे, क्योंकि यह तो इनकी प्रकृति है। किसी को आज खुश करने के लिए चले हो, किसी को कल खुश करना पड़ेगा, परसों किसी और को खुश करना पड़ेगा। यह तो चक्कर है और चलता ही रहेगा। मूल बात यह है कि यह जीवन तभी सफल होगा जब हम इस जीवन के अंदर हृदय की बात को आगे आने देंगे।

— प्रेम रावत (महाराजी)  Mahalakshya