परमानंद को बॉस बनाओ

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जब से हमारा जन्म हुआ, तब से हमारे जीवन में एक प्यास है जो हमेशा अंदर से प्रेरित करती रहती है कि मुझे ऐसा आनंद चाहिए जो निरंतर मेरे अंदर रहे। उस आनंद को पाने के लिए मनुष्य प्रयत्न भी करता है। भगवान को ढूँढ़ता है, परंतु उस भगवान को हमने अपनी कल्पना से ऐसी जगह बिठाया है कि अगर हम जनम-जनम भी ढूँढ़ते रहें तो भी वह हमको न मिले।

लोग कहते हैं, ‘‘भगवान ऊपर है‘!’’ ऐसी जगह पर उसे बिठाया है, जहाँ कोई सीढ़ी जाती ही नहीं है। इसी परिभाषा में सारे लोग फँसे हुए हैं। इस संसार के अंदर उस आनंद के लिए सब परेशान हैं। क्योंकि उसी भगवान का दूसरा नाम है- परमानंद। उस परमानंद को तो आपने बिठाया है ऊपर। परमानंद आपके हृदय में है। तुमने तो भगवान को बिठाया है दूर, और वह है- तुम्हारे बिल्कुल नज़दीक। वह इतना नज़दीक है कि अगर तुम उससे दूर जाना भी चाहो तो जा नहीं सकते। जब तुम उसको खोजने के लिए निकलते हो, तो वह तुम्हारे साथ-साथ निकलता है। जब तुम कहते हो कि ‘‘हे भगवान! अगर तू है तो अपने को दिखा दे’’ तो वह अंदर से ही दरवाज़ा खटखटाता है, ‘‘मैं यहाँ हूँ। तू मुझे बाहर ढूँढ़ता है, मैं तेरे अंदर बैठा हूँ।’’ कहते हैं, ‘‘भगवान को सबकुछ मालूम है!’’ जिसको सबकुछ मालूम है उसको यह भी तो मालूम होगा कि तुमको उसकी ज़रूरत पड़ेगी।

सबके घट में वह परमानंद विराजमान है, परंतु सब बाहर दौड़ लगा रहे हैं। उसी दौड़ को अंदर की तरफ लगाना है। जैसे ही हम अंदर की तरफ दौड़ लगाना शुरू करेंगे, वह परमानंद हमें स्वयं अपने पास बुलाएगा। क्योंकि वहाँ है हृदय, और हृदय के अंदर उसकी प्यास लगी हुई है। उस प्यास को बुझाने की क्या विधि है? वह विधि मैं जगह-जगह जाकर लोगों को बताता हूँ और कहता हूँ कि परमानंद तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है। उसको अपना बॉस बनाओ, उसकी चाकरी करो तो तुम्हारे जीवन के अंदर भी सुख और आनंद की बारिश हो जायेगी।

— प्रेम रावत (महाराजी)  Parmanand ko boss banao