परमेश्वर घट में

satsang event
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लोग समझते हैं कि भगवान एक विचित्र पहेली है। कोई कहता है, "भगवान ऊपर है।" कोई कहता है, "भगवान मंदिर में है।" कोई कहता है, "भगवान है ही नहीं।" कोई कहता है, "भगवान तुम्हारे अंदर है।" अब यह समझने में दिक्कत हो जाती है कि सत्य क्या है।

असली सत्य है- एक स्वांस, जो अंदर आ रहा है और एक स्वांस, जो अंदर से बाहर जा रहा है। ये अब कभी वापस नहीं आ सकता। जो निकल गया, वह निकल गया! जो निकल गया उसमें से आपने अपने लिए क्या बचाया? यह सही प्रश्न है। उसमें से क्या पाया? क्या पकड़ा?

अब सोचिए! एक दिन में आप अपनी समस्याओं का चिंतन ज्यादा करते हैं या भगवान का चिंतन ज्यादा करते हैं? परमपिता परमेश्वर का चिंतन तो आप करना चाहते हैं, पर उसमें एक छोटी-सी दिक्कत यह है कि आप उनको जानते हैं या नहीं। उनसे आपका परिचय हुआ है? उनका ठिकाना मालूम है? वे कैसे लगते हैं, ये मालूम है? नहीं मालूम है, तो चिंतन करने में मुश्किल तो होगी!

चिंतन तो हम सब करना चाहते हैं। कोई व्यक्ति नहीं है, जो परमानंद का अनुभव नहीं करना चाहता हो। सब परमानंद का अनुभव करना चाहते हैं, परंतु वह है कहाँ? यह किसी को नहीं मालूम! जिस परमपिता परमेश्वर का चिंतन आप करना चाहते हैं, वह आपके घट में विराजमान है। हृदय स्थित परमेश्वर तक पहुँचने के लिए श्रद्धा की ज़रूरत है। कैसी श्रद्धा? सच्ची श्रद्धा!

अपने जीवन में उसका अनुभव करो। अब समय आ गया है कि सुख का भी अनुभव करना चाहिए। ऐसे सुख का अनुभव करो, जो परमानंद का सुख है। अपने जीवन को सफल करने का मतलब ही यही है। एक दिन नहीं, दो दिन नहीं, सारी जिंदगी भर ऐसा प्रबंध हो जाए कि उस परमसुख का अनुभव कर सकें।

— प्रेम रावत (महाराजी)  Parmeshwar ghat mein