सृष्टिकर्ता की अनुपम देन

satsang event
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मनुष्य जीवन सृष्टिकर्ता की अनमोल देन है। इस संसार में बनाने वाले ने मनुष्य को उपहार में बहुत कुछ दिया है। उसने हमें आँखें दी हैं। इन आँखों से हम देख सकते हैं। पर हम क्या देखते हैं इन आँखों से, यह हम पर निर्भर करता है। इन आँखों से हम सुंदर चीज़ों को भी देख सकते हैं और बुरी चीज़ों को भी देख सकते हैं। कान दिए हैं। कानों से हम सुन सकते हैं। पर हम क्या सुनते हैं, यह हम पर निर्भर करता है। इन पैरों से हम चल सकते हैं। पर चल कर कहाँ पहुँचेंगे, यह हम पर निर्भर करता है। इस शरीर में स्वांस आता है, स्वांस जाता है और हमें फिर एक दिन का मौका मिलता है। हमें सफलता मिलती है, उपहार मिलते हैं। परंतु एक उपहार और भी है जो भगवान सबको देता है। और वह है स्वांस रूपी उपहार।

संत-महात्मा बार-बार हमको समझाते हैं कि हम अपने जीवन में ज़रा देखें, कि हमारे लिए ज़रूरी चीज क्या है। असली चीज क्या है। जिस दिन हम अपने हृदय में झाँक कर देखेंगे, वहीं मिल जायेगा सबकुछ। परंतु क्या सचमुच में अपने हृदय में झाँककर देखा जा सकता है? कहा है-

कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढ़े बन माहिं।
ऐसे घट-घट ब्रह्म हैं, दुनिया जानत नाहिं।।
यह तो हमने सुना है, परंतु उसे हम जानेंगे कैसे? उसे दिखाने वाला कौन है? इसलिए पहले उसको ढूँढो, उसकी तलाश करो, जो दिखा सके। जो हृदय के अंदर साक्षात् और प्रत्यक्ष रूप में उस सत्य वस्तु का अनुभव कराए। ऐसे सद्गुरु की तुम्हें खोज करनी है। वह होते हैं सद्गुरु।

लोग तो चमत्कार ढूँढ़ते हैं। चमत्कार क्या है? लोग किसको चमत्कार समझते हैं?
जब पत्थर में से दूध निकलने लगता है तो उसे चमत्कार समझते हैं। गऊ दूध देती है, उसको चमत्कार नहीं समझते। असली चमत्कार क्या है? मनुष्य के अंदर स्वांस का आना-जाना, यह है असली चमत्कार। वास्तव में यह जीवन ही चमत्कार है, परंतु लोग इसे समझ नहीं पाते हैं। यह तो एक उपहार है और जब हम इसे अपने जीवन में ग्रहण करेंगे तब हम भी भगवान का लाख-लाख शुक्रिया अदा करना शुरू करेंगे और हर एक स्वांस की कीमत पहचानना शुरू करेंगे। उस दिन से हम सच्चे अर्थ में जीना शुरू करेंगे।

— प्रेम रावत (महाराजी)  Srishtikarta ki anmol den