स्वर्ग तुम्हारे हृदय में है
मनुष्य अपने जीवन में स्वर्ग की कामना करता है। वह सोचता है कि हो सकता है मेरे मरने के बाद मुझे स्वर्ग मिले। लोग कहते हैं कि हम अच्छा काम करेंगे तो स्वर्ग जायेंगे और स्वर्ग में फिर आनंद ही आंनद मिलेगा। परंतु संत-महापुरुषों ने कहा है कि स्वर्ग जीते-जागते संभव है। अगर अपना स्वर्ग इस जीवन में नहीं ढूँढ पाए तो उस स्वर्ग में क्या करोगे।
लोग अंधविश्वास में पड़ जाते हैं। इस जिन्दगी के अंदर तुमको एक मौका मिला है। तुम चर्चा करते हो कि पिछले जनम में तुम क्या थे और अगले जनम में तुम्हारा क्या होगा। सचमुच में भाग्यशाली और बुद्धिमान वह है, जो अपना स्वर्ग यहीं बना ले।
स्वर्ग भी यहाँ है, नरक भी यहाँ है। जब जान लिया उस चीज़ को जो हमारे अंदर है तो स्वर्ग पहुँच जाओगे और जब नहीं जाना, तो नरक में पड़े रहोगे। सबसे बड़ा नरक तो यह हुआ है कि स्वर्ग में रहते हुए भी तुम्हें पता नहीं है कि स्वर्ग में हो।
एक वह गरीब होता है जिसके पास पैसा नहीं है और एक गरीब वह होता है जिसके घर के नीचे अरबों की संपत्ति है और फिर भी वह गरीब है। वह है असली गरीब। एक तो वह भूला-भटका होता है जिसे नहीं मालूम है कि उसकी मंज़िल कहाँ है। एक भूला-भटका वह होता है जो मंज़िल पर पहुँच तो गया, फिर भी उसको नहीं मालूम है, कि वह कहाँ भटक रहा है।
मनुष्य के साथ भी यही बात है। जिस खज़ाने के साथ उसका जन्म हुआ, मृत्यु तक वह खज़ाना अंदर रहेगा, परंतु उस आदमी को नहीं मालूम है। फिर भी भटकता रहता है, फिर भी खोया रहता है, फिर भी और बातों में लगा रहता है। जिस स्वर्ग की तुमको तलाश है, वह तुम्हारे हदय में है।