जिस क्षण मैंने यह जान लिया कि भगवान हर एक मानव शरीर रुपी मंदिर में विराजमान है, जिस क्षण मैं हर व्यक्ति के सामने श्रद्धा से खड़ा हो गया और उसके भीतर भगवान को देखने लगा- उसी क्षण मैं बंधनों से मुक्त हूँ, हर वो चीज़ जो बाँधती है, नष्ट हो गयी और मैं स्वतंत्र हूँ.