यह शरीर मिट्टी है। एक दिन इस मिट्टी को मिट्टी में ही मिल जाना है। परंतु जब तक ये मिट्टी हँसती है, रोती है, बोलती है, नाचती है, सुनती है, ये अपना जीवन सफल कर सकती है। जिस दिन इस मिट्टी ने अपना जीवन सफल कर लिया, यह मिट्टी नहीं रह जायेगी। यह एक ऐसा बर्तन बन जायेगी, जिस बर्तन के अंदर अमृत ही अमृत भरा हुआ है। क्योंकि उसने अपने जीवन में उस चीज़ को पहचान लिया, उस चीज़ को देख लिया, उस चीज़ को सुन लिया।