शांति तुम्हारे अंदर है

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तुम्हारे जीवन में किस चीज़ की कमी है? भगवान ने जो दिया, वह दिया। तुम उसको किस रूप में इस्तेमाल करते हो, यह तुम पर निर्भर है। ठीक ढ़ंग से इस्तेमाल करोगे तो आनंद मिलेगा। गलत ढ़ंग से इस्तेमाल करोगे तो जीवन में दुख होगा। यह बिल्कुल स्पष्ट बात है।

कबीरदास जी का एक भजन है। मुझे बड़ा अच्छा लगता है। उन्होंने कहा है-

पानी में मीन पियासी, मोहे सुनि सुनि आवे हांसी।
किस मीन की बात हो रही है? कौन है वह मीन? कहाँ है वह पानी? तुम ही हो वह मीन। यह तुम्हारी बात हो रही है।
मृग-नाभि में है कस्तूरी, बन बन फिरत उदासी।।
वह मृग तुम हो और यह संसार है वन। तुम्हारे अंदर ही है वह कस्तूरी। तुम भी मृग की तरह जगह-जगह भटक रहे हो कि ‘‘क्या होगा? क्या हाल होगा मेरा? क्या करूंगा मैं?’’ चिंता लगी रहती है। सबको चिंता सताती रहती है। मनुष्य को किस-किस चीज की चिंता है।
आत्मज्ञान बिना नर भटके, क्या मथुरा क्या काशी।
क्या तुम्हें आत्मा का ज्ञान है? दुनिया के लोग आत्मज्ञान को तो रखते हैं अलग, और कहते हैं कि ‘‘आत्मा क्या है जी?’’ बात आत्मा की नहीं है। बात है आत्मज्ञान की, क्योंकि बिना ज्ञान हुए, तुम समझ नहीं पाओगे कि तुम कौन हो। जो तुम अपने आपको समझते हो, तुम वह नहीं हो। तुम क्या हो इसको समझने के लिए, तुम्हारे अंदर स्थित जो चीज़ है उसको जानना पड़ेगा। जबतक तुम उसको नहीं जानोगे, तबतक समझ नहीं पाओगे कि तुम क्या हो।

इस संसार में अनगिनत लोग हैं, जो भगवान में विश्वास करते हैं। देखा कभी नहीं, जाना कभी नहीं, पर विश्वास करते हैं। बात विश्वास करने की नहीं है, बात अनुभव करने की है। हमारी बात सिर्फ कहने-सुनने की नहीं है। हम उन लोगों को ज्ञान देते हैं, जिनको ज्ञान चाहिए। ज्ञान पाने के लिए किस चीज़ की ज़रूरत है? श्रद्धा की ज़रूरत है। श्रद्धा होनी चाहिए, प्यास होनी चाहिए।अगर आदमी के अंदर जिज्ञासा नहीं है तो वह कोई भी बात समझ नहीं पाएगा।

उस शांति को खोजो, जो तुम्हारे अंदर है। उसको ढूँढो। जहाँ मिले, वहीं बढ़िया है और न मिले तो हमारे पास आना। शांति का अनुभव अंदर होता है। अंदर का अनुभव- अगर तुम्हें वह अनुभव चाहिए तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ।

— प्रेम रावत (महाराजी)  Shanti tumhare andar hai